rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

Authorrehmat

इस कदर हम उसके हुए जुलाहा कि फिर हम हमारे ही ना रहे.

इस कदर हम उसके हुए जुलाहा कि फिर हम हमारे ही ना रहे.
अब इशारों पर नाचने भी लगे हैं और कहने को बंजारे भी ना रहे.
सारे हुक्म भी क़ुबूल, सारे नख़रे भी क़ुबूल, सब शोख़ियाँ भी क़ुबूल.
उसके नए नए शिगूफ़ों से हो रहा है निकाह और कहने को हम कँवारे भी ना रहे.

– रहमत (जुलाहा)

शिगूफ़ा – अनोखी बात

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ग़र्क़ सुबह हो रही है, तमाम शाम हो रही है.

ग़र्क़ सुबह हो रही है, तमाम शाम हो रही है.
ज़िंदगी ए “मतलब” महफ़िलों के नाम हो रही है.
ग़म ए दिल सुनाएँ भी तो किसको सुनाएँ जुलाहा.
वो ज़र्रा नवाज़ समझ रहे हैं ख़ुद को.
और ज़िंदगी ज़र्रा ए आम हो रही है.

– रहमत (जुलाहा)

ज़र्रा नवाज़ – किसी को कुछ देने वाला
ज़र्रा ए आम – छोटे से धूल के ज़र्रे बराबर

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लहरा कर उसका दुपट्टा मेरे चेहरे पर ऐसे उड़ता चला गया.

लहरा कर उसका दुपट्टा मेरे चेहरे पर ऐसे उड़ता चला गया.
मैं उसके क़दमों से जुड़ा जुड़ा, उसके पीछे मुड़ता चला गया.

– रहमत (जुलाहा)

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ख़तावार ये मुल्ज़िम अब सज़ा ए तौक़ पर.

ख़तावार ये मुल्ज़िम अब सज़ा ए तौक़ पर.
मेरे रास्ते तेरी जूती के नीचे, मेरा दिल तेरी राह ए शौक़ पर.

– रहमत (जुलाहा)

ख़तावार – जिसने ख़ता की हो, क़ुसूरवार
मुल्ज़िम – जिस पर इल्ज़ाम लगा हो
तौक़ – लोहे की भारी बेड़ियाँ जो दीवानों के गले में डाली जाती हैं ताकि गर्दन ना उठ सकें
राह – रास्ता
शौक़ – desire

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आम आँ नशा ए जिस्म ए ‘ऊर जुलाहा.

आम आँ नशा ए जिस्म ए ‘ऊर जुलाहा.
शराब ए हया ए निगाह ए उल्फ़त कहाँ.

– रहमत (जुलाहा)

आम – सब में होने वाला
आँ – वो, किसी चीज़ को देख कर मुँह से निकला शब्द
‘ऊर – नंगापन
हया – शरम
उल्फ़त – प्यार, मुहब्बत
निगाह ए उल्फ़त – मुहब्बत की नज़र

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ना हो करामात ओ मो’जिज़ा ए नज़ाकत जुलाहा.

ना हो करामात ओ मो’जिज़ा ए नज़ाकत जुलाहा.
सब शिद्दत ए तकमील बेज़ार ओ आज़ार हो जाए.

मुसलसल तवक़्क़ो’ ओ ज़रूरत ओ वाबसता ए हयात ये ‘इश्क़.

बाद चूमने को जबीं ए ज़ौजा हो तुलू’ ए आफ़ताब.
हो नमाज़ ए फ़ज़्र में बेदार ओ शुक्रगुज़ार हो जाए. (ख़ुदा का शुक्रगुज़ार)

– रहमत (जुलाहा)

करामात – ऐसा काम जो आसान ना हो, जादू
मो’जिज़ा – चमत्कार
नज़ाकत – नाज़ुक होना, धीरे से चलना, ख़ूबसूरती
शिद्दत – किसी काम को पूरा ज़ोर लगा देना
तकमील – पूरा काम
बेज़ार – थका हुआ
आज़ार – तकलीफ़
मुसलसल – लगातार
तवक़्क़ो’ – उम्मीद
ज़रूरत – सबब, need
वाबसता – जुड़ा हुआ
हयात – ज़िंदगी
जबीं – पेशानी, forehead
ज़ौजा – बीवी
तुलू’ – उगना, उठना, जैसे सूरज उगना
आफ़ताब – रोशनी, सूरज
नमाज़ ए फ़ज़्र – सुब्ह आसमान में रोशनी होने से ठीक पहले पढ़ी जाने वाली नमाज़
बेदार – जागना
शुक्रगुज़ार – शुक्रिया अदा करना
(नमाज़ में ख़ुदा का शुक्र अदा करना)

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एक गली के दवाख़ाने की खिड़की ऐसे बंद हुई कि अब तक दवा ना मिली.

एक गली के दवाख़ाने की खिड़की ऐसे बंद हुई कि अब तक दवा ना मिली.
ये शे’र ओ शायरी ज़रा कारगर तो रही मगर अब भी कोई शिफ़ा ना मिली.

– रहमत (जुलाहा)

कारगर – असरदार
शिफ़ा – बीमारी से राहत मिलना

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लिख-लिख कर पढ़ता रहा जुलाहा, हुस्न ए सुरख़ाब की तरह.

लिख-लिख कर पढ़ता रहा जुलाहा, हुस्न ए सुरख़ाब की तरह.
देख-देख कर गले ख़राशते रहे जाहिल, निरे लु’आब की तरह.

– रहमत (जुलाहा)

हुस्न – ख़ूबसूरती
सुरख़ाब – एक पक्षी जो जोड़े से जुदा होने पर रात भर उसे पुकारता है
ख़राशना – गले में खिच खिच होने पर आवाज़ करना
जाहिल – नासमझ, अनपढ़
निरे – पूरे
लु’आब – थूक, खंखार

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मस्तूल ए हिंदुस्ताँ से ऊँचा, अब कोई क्या परवान चढ़े.

मस्तूल ए हिंदुस्ताँ से ऊँचा, अब कोई क्या परवान चढ़े.
हवा में लहराने लगा है कोहली, और बुमराह उड़ान भरे.
मैदान ए जहाज़ में हर खिलाड़ी कर रहा है मुकम्मल कोशिशें.
बह चले आसमाँ में तिरंगा, सारे समंदर को हैरान करे.

– रहमत (जुलाहा)

हवा में लहराना – बल्लेबाज़ी
उड़ान भरना – गेंदबाज़ी
मस्तूल – जिस डंडे पर जहाज़ का सबसे ऊँचा झंडा लगाया जाए.

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एक बार मिल जाए तू मुझे, बस एक बार मेरी रूह फ़ना हो जाए.

एक बार मिल जाए तू मुझे, बस एक बार मेरी रूह फ़ना हो जाए.
निकल आऊँ हाल ए जहन्नम से, एक बार मुझसे ये गुनाह हो जाए.

– रहमत (जुलाहा)

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rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी
Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)