घर बुनता रहा जुलाहा, तो कारीगर अच्छा लगा.
पसीना सूखा भी नहीं, सब हस्ब-ए-मामूल हक़ से मुकर गए.
– रहमत (जुलाहा)
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घर बुनता रहा जुलाहा, तो कारीगर अच्छा लगा.
पसीना सूखा भी नहीं, सब हस्ब-ए-मामूल हक़ से मुकर गए.
– रहमत (जुलाहा)
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जींस की छोटी जेब से ही, मेरी हिम्मत रही.
सिक्के सा मेरा एक दोस्त, नज़रों से नहीं गिरा.
– रहमत (जुलाहा)
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मुसव्विर जो नहीं थे हम, तो तेरी तस्वीर कैसे बनाते.
हम जितने भी आईने लाए, सब में बस तू निकला.
जानाँ हमने तेरी याद में, तुझसे बेवफ़ा हो कर भी देखा.
तसव्वुर में जितने घूँघट उठाए, सब में बस तू निकला.
– रहमत (जुलाहा)
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तेरे कान की झुमकी, अजब तमाशा करे.
तू जान डाल कर मुझमें, मुझे तराशा करे.
हल्की सी चले हवा, तो ज़ुल्फ़ ऐसे लहराए.
मेरे दिल की धड़कन, मुझे तलाशा करे.
– रहमत (जुलाहा)
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जितने भी हमदर्द हैं मेरे, तुमसे दूर ठीक हो रहा हूँ मैं.
अब के दवाएँ जितनी लाओ, थोड़ी ज़्यादा लाना.
मुझसे मीठा बोलने वालों, मैं तुम्हें दुआएँ दूँगा.
इस बार जो ज़हर ले के आओ, तो थोड़ा ज़्यादा लाना.
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– रहमत (जुलाहा)
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उस एक चराग़ से घर रोशन हुआ.
लूट कर रोशनी बुझाया जिसे गया.
– रहमत (जुलाहा)
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हम अपनी अच्छी आदतों में अब किसी से दिल नहीं मिलाते.
मशवरा देते हैं मिलते रहने का बस मिल नहीं पाते.
– रहमत (जुलाहा)
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नज़रों में बसाए रखते हैं हम तुझे जान ए नज़र.
हमारे सिवा नज़र किसी को आए तो नज़र ना लगे.
– रहमत (जुलाहा)
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क्या बताऊँ कौन किस “हूँ” की जफ़ा में था.
मैं ज़मीन पर खड़ा रहा हर शख़्स हवा में था.
– रहमत (जुलाहा)
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कोई आगे या पीछे कि पहले कौन जाए.
मैं दुआ में ज़मीन ओ आसमाँ को बता कर रखूँगा.
तू मुझसे पहले जाए तो रोशन कर देना.
मैं तुझसे पहले जाऊँ तो जन्नत सजा कर रखूँगा.
– रहमत (जुलाहा)
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