ज़ार ज़ार रो भी लेते, थोड़ा सुधर भी जाते.
हम तुझसे दूर हो भी जाते तो किधर जाते.
ज़रा आँख लग भी जाती तो फिर होश में आते.
ग़र ठीक से सो भी जाते तो मर जाते.
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कोई नहीं आया साखी ग़म ए तन्हाई के साये में.
एक आवाज़ भी लगती तो हम ठहर जाते.
आईना भी जो दिखता तो पूछ ही लेता था तबीयत.
हम मुस्कुराते भी जाते थे और मुकर जाते.
परिंदों को ही सही मगर दर्द मालूम तो हुआ शायद.
गाँव या शहर, चले आते हम जिधर जाते.
सब रिश्तेदार और दोस्त रहते हैं जन्नत में रफ़त.
मालूम होगा ख़ुदा को कोई कैसे हमारे घर आते.
– रहमत (जुलाहा)
हर शख़्स उठाता है लुत्फ़ मेरे सस्ता होने का रहमत.
हर शख़्स उठाता है लुत्फ़ मेरे सस्ता होने का रहमत.
हूँ महँगे मिज़ाज ए शौक़ का मौज़ू’ ख़ातिर ए मुस्कान.
– रहमत (जुलाहा)
समझते हैं शायरी लोग जिसे, रहमत हाल ए ग़म सुनाता हूँ.
समझते हैं शायरी लोग जिसे, रहमत हाल ए ग़म सुनाता हूँ.
ना थोड़ा कम ना थोड़ा ज़्यादा, सब बस ठीक ठीक बताता हूँ.
– रहमत (जुलाहा)
कोई हूक ए हसद से कोई शौक़ ए हराम से.
कोई हूक ए हसद से कोई शौक़ ए हराम से.
हर शख़्स घर ले डूबा होगा बड़े ही आराम से.
– रहमत (जुलाहा)
यूँ ही नहीं उसकी दुआ अल्लाह अर्श से गुज़ारा करे.
यूँ ही नहीं उसकी दुआ अल्लाह अर्श से गुज़ारा करे.
जब अल्लाह को याद कर के बंदा अल्लाह अल्लाह पुकारा करे.
– रहमत (जुलाहा)
इस नफ़्सा नफ़्सी में किसी के दिल में पूरा नहीं आता कोई.
इस नफ़्सा नफ़्सी में किसी के दिल में पूरा नहीं आता कोई.
बैठ कर पैर फैलाना तो दूर, खड़े खड़े चला जाता कोई.
– रहमत (जुलाहा)
ए ज़िंदगी इब्तेदा तुझसे इश्क़ होता तो क्या होता.
ए ज़िंदगी इब्तेदा तुझसे इश्क़ होता तो क्या होता.
ठीक है जीना मुहाल है, ग़र ख़ुदा ना मिलता तो क्या होता.
– रहमत (जुलाहा)
किसी के मुँह में कड़वी रोटी, किसी के मुँह में फ़ातिहा का बताशा देखेंगे.
किसी के मुँह में कड़वी रोटी, किसी के मुँह में फ़ातिहा का बताशा देखेंगे.
रहमत, हम जाते जाते भी अदाकारों का तमाशा देखेंगे.
– रहमत (जुलाहा)
तरीक़ा ए क़ाबिलियत से आसमाँ भी चमका देते.
तरीक़ा ए क़ाबिलियत से आसमाँ भी चमका देते.
ख़ुदा ने रहमत बंदों को बस मुसाफ़िर ए ज़मीं बनाया.
– रहमत (जुलाहा)
मैं वो चराग़ हूँ जिसे जला कर घर रोशन हुआ.
मैं वो चराग़ हूँ जिसे जला कर घर रोशन हुआ.
ज़रूरत नहीं तो अब बुझाने में लगे हैं मेरे सारे अपने.
या इलाही! सब तूफ़ान चले गए मुझे देख कर यूँ ही.
अभी तेरी रहमत का झोंका देखा कहाँ है सबने.
– रहमत (जुलाहा)