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रहमत (जुलाहा) की शायरी

शायरी

हम पागलों का भी ख़ुदा ही हाक़िम है रहमत.

हम पागलों का भी ख़ुदा ही हाक़िम है रहमत.
मुकम्मल पूरा दिमाग़ इबादतों में निहा कर दिया.
कितनी भी कुव्वत ए दस्त हो, हाथ उठाना ग़लत है तो है.
एक बर्दाश्त ने मेरा दिल दुनिया से रिहा कर दिया.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)