ख़ुश हूँ कि ढक लेते हैं ‘ऐब बातें छाँट कर.
शरी’अत ने रहमत सबको ज़िंदा रक्खा है.
– रहमत (जुलाहा)
इल्म का नुक़सान करवाते रहे थे फिर मेरे ईमान पर आए.
इल्म का नुक़सान करवाते रहे थे फिर मेरे ईमान पर आए.
मेरा माल हड़प कर अब जान लेने पर तुले हुए हैं लोग.
– रहमत (जुलाहा)
मुत्तक़ी मुर्शिद मुरीद मुश्ताक़ ए मीर ओ इल्मदार.
मुत्तक़ी मुर्शिद मुरीद मुश्ताक़ ए मीर ओ इल्मदार.
रहमत के रास्ते में बैठे हैं कितने कि जाने हम किधर से जाएँ.
– रहमत (जुलाहा)
हम पागलों का भी ख़ुदा ही हाक़िम है रहमत.
हम पागलों का भी ख़ुदा ही हाक़िम है रहमत.
मुकम्मल पूरा दिमाग़ इबादतों में निहा कर दिया.
कितनी भी कुव्वत ए दस्त हो, हाथ उठाना ग़लत है तो है.
एक बर्दाश्त ने मेरा दिल दुनिया से रिहा कर दिया.
– रहमत (जुलाहा)
हिसाब ए क़यामत में अकेले रो रहे होंगे सब.
हिसाब ए क़यामत में अकेले रो रहे होंगे सब.
ख़ुदा का शुक्र है रहमत मुझे ऐसी आदत हो गयी.
– रहमत (जुलाहा)
हाथ छोड़ कर कलम उठा तो ली मैंने रहमत.
हाथ छोड़ कर कलम उठा तो ली मैंने रहमत.
राह ए ख़ुदा में ज़्यादा सहना अब भी लाज़िम है.
– रहमत (जुलाहा)
हर शख़्स को हुआ इल्म ए मतलब का शु’ऊर.
हर शख़्स को हुआ इल्म ए मतलब का शु’ऊर.
रहमत हक़ मारना सवाब हुआ अब हक़ बोलना ग़ुरूर.
– रहमत (जुलाहा)
बता देता हूँ मैं अपना समझ सबको राज़ अपने.
बता देता हूँ मैं अपना समझ सबको राज़ अपने.
ख़ैर छोड़ो रहमत, अब ये भी क्यों बताऐं.
– रहमत (जुलाहा)
उम्र भर सच बोलने का नशा बढ़ता ही रहा.
उम्र भर सच बोलने का नशा बढ़ता ही रहा.
रहमत अब ऐसे चुप हैं जैसे कहीं के ना रहे.
– रहमत (जुलाहा)
हैरान होंगे सब जन्नत जब हैरान होगी.
हैरान होंगे सब जन्नत जब हैरान होगी.
सिर्फ़ दावे करते रहे फिर आया कोई नहीं.
– रहमत (जुलाहा)