rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

Authorrehmat

तेरी आँखों के समंदर में कुछ इस तरह गुम हो जाऊँ.

तेरी आँखों के समंदर में कुछ इस तरह गुम हो जाऊँ.
मैं लगा कर तकिया हशर तलक वहीं सो जाऊँ.
खो जा तू भी मुझमें कि अब होश में नहीं आना मुझे.
लिखता रहूँ शायरी और तुझमें कहीं खो जाऊँ.
शायर तो बन चुका हूँ रहमत अब कोई मिसरा तो दे.
लिखूँ तेरी दिलकश सूरत और लफ़्ज़ों में पिरो जाऊँ.
समेट कर होटों से तुझ पर गिरते उठते कुदरत के सौ रंग.
बना दूँ अल्फ़ाज़ों से तेरी तस्वीर और फ़नकार हो जाऊँ.

– रहमत (जुलाहा)

मेरे साथ रह कर हर घड़ी.

मेरे साथ रह कर हर घड़ी.
पल पल घड़ी घड़ी सताए जा रही थी.
घड़ी खोल कर रख दी मैंने.
सबकी औक़ात बताए जा रही थी.

– रहमत (जुलाहा)

दुनिया को मुल्क ओ गैर-मुल्क की लकीरों में बाँट लिया.

दुनिया को मुल्क ओ गैर-मुल्क की लकीरों में बाँट लिया.
जो कम लगा तो मज़हब की जागीरों में बाँट लिया.
आज़ाद रहने ही कहाँ दिया ख़ुदा की ज़मीन को रहगुज़र.
जितना जितना बेहतर लगा सबने उतना उतना छाँट लिया.

– रहमत (जुलाहा)

तेरी आँखों के समंदर में कुछ इस तरह गुम हो जाऊँ.

तेरी आँखों के समंदर में कुछ इस तरह गुम हो जाऊँ.
मैं लगा कर तकिया हशर तलक वहीं सो जाऊँ.
खो जा तू भी मुझमें कि अब होश में नहीं आना मुझे.
लिखता रहूँ शायरी और तुझमें कहीं खो जाऊँ.

शायर तो बन चुका हूँ रहमत अब कोई मिसरा तो दे.
लिखूँ तेरी दिलकश सूरत और लफ़्ज़ों में पिरो जाऊँ.
समेट कर होटों से तुझ पर गिरते उठते कुदरत के सौ रंग.
बना दूँ अल्फ़ाज़ों से तेरी तस्वीर और फ़नकार हो जाऊँ.

– रहमत (जुलाहा)

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ना लेती हो तुम जान बस एक मुलाक़ात में.

ना लेती हो तुम जान बस एक मुलाक़ात में.
शब के हर पहर ख़यालों में मक़ाम करती हो.
सुबह को देती हो फिर वफ़ाओं का मरहम.
शाम फिर निगहों से क़त्ल ए आम करती हो.

– रहमत (जुलाहा)

rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी
Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)