मर गए जो तुम हमपे, तो इश्क़ की हसरत कैसे होगी.
फूल दफ़न रहेगा दिल में, फूल की ज़ियारत कैसे होगी.
– रहमत (जुलाहा)
नहीं फ़िक्र कि क़ब्र तराश भूखे ही मर जाएँगे.
नहीं फ़िक्र कि क़ब्र तराश भूखे ही मर जाएँगे.
कुछ मरे हुए लोग आज भी ज़िंदा घर जाएँगे.
– रहमत (जुलाहा)
उम्र भर की दौलत में सिर्फ़ एक कफ़न ही आया रहमत.
उम्र भर की दौलत में सिर्फ़ एक कफ़न ही आया रहमत.
जनाज़े में शरीक भीड़ ने ऐसे क़ीमत नहीं लगाई.
– रहमत (जुलाहा)
अब मुल्क़ छोड़ कर कोई जाए भी तो कैसे बता.
अब मुल्क़ छोड़ कर कोई जाए भी तो कैसे बता.
रहमत लिखने को इससे ज़्यादा दर्द कहाँ मिलता है.
– रहमत (जुलाहा)
मुल्क़ – अपने
फिर माँगते रहे दुआएँ कि जहाँ जाए ख़ुश रहे.
फिर माँगते रहे दुआएँ कि जहाँ जाए ख़ुश रहे.
एक नाज़ुक से फूल के नज़र भी हम ही ने लगाई.
– रहमत (जुलाहा)
अब सुकून से सोने की ख़ातिर लेट ना सके.
अब सुकून से सोने की ख़ातिर लेट ना सके.
वो वहाँ भी याद आया जिसकी ख़ातिर दम निकला.
– रहमत (जुलाहा)
फैलाते रहे हैं लोग मज़हबों से सीख कर इतनी गंदगी वर्ना.
फैलाते रहे हैं लोग मज़हबों से सीख कर इतनी गंदगी वर्ना.
सियासत तो उधर भी साफ़ है, सियासत इधर भी साफ़ है.
– रहमत (जुलाहा)
तुझसे दूर देखूँ भी तो किसे देखूँ रफ़त.
तुझसे दूर देखूँ भी तो किसे देखूँ रफ़त.
अब चाँद से दूर देखूँ भी तो क्या दिखे.
– रहमत (जुलाहा)
वो ले जाते हैं शादियों में मुझे इतने मासूम बन कर.
वो ले जाते हैं शादियों में मुझे इतने मासूम बन कर.
रहमत ख़ैर ओ ख़बर के झगड़े ग़ैरों को रोशन ना हुए.
– रहमत (जुलाहा)
मिट्टी के वो कच्चे मकाँ देखे, छोटी छोटी गलियों का सलीक़ा ओ क़रीना देखा.
मिट्टी के वो कच्चे मकाँ देखे, छोटी छोटी गलियों का सलीक़ा ओ क़रीना देखा.
महक कर सौंधी सी ख़ुशबू आई, उन बरसती बूँदों में हुज़ूर का पसीना देखा.
दरवाज़ों और झरोखों से चमक रहा था ख़ुदा का नूर कि ख़ुदा का शुक्र है.
कितना खुशनसीब हूँ जो उड़ा ले गया कोई, मैंने बचपन के ख़्वाबों में मदीना देखा.
– रहमत (जुलाहा)