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रहमत (जुलाहा) की शायरी

शायरी

हर किसी की बात पे, टूटा करूँ मैं कितने टुकड़े.

हर किसी की बात पे, टूटा करूँ मैं कितने टुकड़े.
एक ही तो दिल है, कहाँ से लाऊँ इतने टुकड़े.
किस के लिए अच्छा बनूँ, किस को रिझाऊँ मैं.
इतनी नज़रें हैं बस्ती में, चेहरे के बनाऊँ कितने टुकड़े.
कोई जाने आधी बात, कोई जाने आधा किस्सा.
ख़ुद में एक अहसास नहीं, मुझे सिखाएँ इतने टुकड़े.
हर शख़्स की मर्ज़ी पे चलूँ, तो मैं क्या होऊँ.
एक वजूद के मेरे, कर के दिखाऊँ कितने टुकड़े.
– रहमत (जुलाहा)

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याद ए नाज़नीं में यार, अश्क-ए-दिल भी रवाँ किए.

याद ए नाज़नीं में यार, अश्क-ए-दिल भी रवाँ किए.
अब ख़ुद से बेगाना हैं हम, ख़ुद से रिश्ते मिटाए गए हैं.
हमने चाकू से तराशा दिल को बिल्कुल तेरे मुताबिक़.
तेरी तर्ज़-ए-अदा पे ढले, सब नख़रे हटाए गए हैं.
– रहमत (जुलाहा)

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ख़ंजर भी खाएँ और ये ग़मख़्वारी.

ख़ंजर भी खाएँ और ये ग़मख़्वारी.
लोगों ने रहमत ज़ख़्म भी दिये, तज़वीर भी दी.
ग़मगीनी ए दिल और फिर हाजत बरारी.
ख़ुदा ने रहमत नाम भी दिया, तासीर भी दी.
– रहमत (जुलाहा)

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अंधेरों में दो पल बैठकर बताते हैं एहसान वो क्या जानें रहमत.

अंधेरों में दो पल बैठकर बताते हैं एहसान वो क्या जानें रहमत.
कितनी रातें जाग कर हमने हक़ के कितने उजाले लुटाए.
– रहमत (जुलाहा)

#shayari #life #julaha #people

लिखूँ जो रूह ए ग़ज़ल ए सहर ए नौ में तेरा नाम ए जान-सरापा.

लिखूँ जो रूह ए ग़ज़ल ए सहर ए नौ में तेरा नाम ए जान-सरापा.
लब ओ ज़बाँ पर चाश्नी की क्या मज़ाल जो इससे मीठी हो जाए.
– रहमत (जुलाहा)

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सब महबूब ए बेगम हैं, सब बेगम के ग़ुलाम.

सब महबूब ए बेगम हैं, सब बेगम के ग़ुलाम.
बैठे हैं ख़ुद दामन में उनके, और हम शायरों पे इल्ज़ाम.
कहते हैं कि हम हैं आशिक़, हम इश्क़ में बदनाम.
नादाँ ये क्या जानें, बेगम ही शायरी, बेगम ही नज़्म का मक़ाम.
– रहमत (जुलाहा)

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साहिब ए जमाल सूरत दिलरुबा मरग़ूब ए ख़लक़.

साहिब ए जमाल सूरत दिलरुबा मरग़ूब ए ख़लक़.
सादगी नहीं होती तो हम पर हिजाब नहीं होते.
रहमत होते हुस्न ए अदब ओ शीरीं कलाम ख़ुश ए मशरब.
ज़बाँ खरी नहीं होती तो हम पर ‘अज़ाब नहीं होते.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)