rehmat.re

रहमत (जुलाहा) की शायरी

शायरी

मेहरबानी ओ करम ज़र्रा नवाज़ ज़रा ठहरे.

मेहरबानी ओ करम ज़र्रा नवाज़ ज़रा ठहरे.
मशक़्क़त से चूर उनके पाँव आते जाते यूँ.
बलंद मक़ाम ए यार ज़ेर ए मुहब्बत उतरे.
नसीब ए ताबिंदगी ए रहमत ना घबराते यूँ.
– रहमत (जुलाहा)

उड़ाता है एक शख़्स मेरे किरदार पर धूल, फिर भी हैरां हूँ बशारतों पर.

उड़ाता है एक शख़्स मेरे किरदार पर धूल, फिर भी हैरां हूँ बशारतों पर.
रहमत जिन्न ओ बशर मेरा काँच का घर फिर भी महफ़ूज़ बताते हैं.
– रहमत (जुलाहा)

rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी
Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)