अल्लाह के करम से मज़हब में इंतिज़ाम बहुत हैं.
ज़माने में बद-बख़्ती का जवाब, ख़्वाहिशों के अंजाम बहुत हैं.
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हम पर इल्ज़ाम बहुत हैं, हम यूँ तो बदनाम बहुत हैं.
होगा कोई जाहिल बे-‘इल्म तो होगा अपने घर में.
आँखों में ये इज़्ज़त काफ़ी है कि हम सच बोल कर परेशान बहुत हैं.
सब कर दिया बस ये ही ना हो पाएगा उम्र भर कि तुझे दग़ा दे दें.
हम वफ़ादार बहुत हैं रफ़त ए रहमत, हम दिलदार बहुत हैं.
– रहमत (जुलाहा)
अल्लाह के करम से मज़हब में इंतिज़ाम बहुत हैं.
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