उड़ाता है एक शख़्स मेरे किरदार पर धूल, फिर भी हैरां हूँ बशारतों पर. By rehmatOctober 11, 2024Add comment उ उड़ाता है एक शख़्स मेरे किरदार पर धूल, फिर भी हैरां हूँ बशारतों पर. रहमत जिन्न ओ बशर मेरा काँच का घर फिर भी महफ़ूज़ बताते हैं. – रहमत (जुलाहा) FacebookX