rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

ख़तावार ये मुल्ज़िम अब सज़ा ए तौक़ पर.

ख़तावार ये मुल्ज़िम अब सज़ा ए तौक़ पर.
मेरे रास्ते तेरी जूती के नीचे, मेरा दिल तेरी राह ए शौक़ पर.

– रहमत (जुलाहा)

ख़तावार – जिसने ख़ता की हो, क़ुसूरवार
मुल्ज़िम – जिस पर इल्ज़ाम लगा हो
तौक़ – लोहे की भारी बेड़ियाँ जो दीवानों के गले में डाली जाती हैं ताकि गर्दन ना उठ सकें
राह – रास्ता
शौक़ – desire

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)