चेहरे पर चश्मा और हाथों में बंदूक़, ये क्या ‘अज़ाब है.
हम तो उसकी निगाहों से रहमत मरे बैठे हैं.
– रहमत (जुलाहा)
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तू कब तक पियेगा कि क्या क्या लिखें.
हम तो जाम ए इश्क़ दिल में साखी भरे बैठे हैं.
एक उसकी सूरत है कि हमसे सँभलती ही नहीं.
यूँ तो निगाहों से हम भी कितने क़त्ल करे बैठे हैं.
जाएज़ है उसका नख़रा वो ऐसे ही हमें दिल नहीं देगा.
हैं सब मजनू बेवफ़ा जिनमें एक हम ही खरे बैठे हैं.
– रहमत (जुलाहा)