टूटे हैं सारे ख़्वाब अब वो परवाज़ ज़बर नहीं आयेगा.
दब कर दोज़ ए ज़िम्मा ए नाज़ कहीं ख़बर नहीं आएगा.
कबूतरों से कह दो कि आज से हौसले बलंद रख लें रहमत.
आज से बस्ती में वो ग़ैज़ ओ ग़ज़ब ए बाज़ नज़र नहीं आयेगा.
– रहमत (जुलाहा)
टूटे हैं सारे ख़्वाब अब वो परवाज़ ज़बर नहीं आयेगा.
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