तुझसे मिलकर कुछ ना बतलाऊँ, और ना कुछ कहूँ.
तू मुझे समझाए तेरी आँखों से मेरा प्यार, और मैं चुप रहूँ.
तू मुस्कुराए तो समझूँ हाँ है, और देखे ब-हैरत तो मना है.
तेरे मर्ज़ी हो कि पास रुक जाऊँ या दूर ग़म ओ आलम में रहूँ.
काश तू कर जाए मेरे हक़ में दुआ, और मैं भी करता रहूँ.
जो शरमाए तो समझूँ तू भी मुझपे मरता है, और मैं भी मरता रहूँ.
– रहमत (जुलाहा)
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