rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

तुझसे मिलकर कुछ ना बतलाऊँ, और ना कुछ कहूँ.

तुझसे मिलकर कुछ ना बतलाऊँ, और ना कुछ कहूँ.
तू मुझे समझाए तेरी आँखों से मेरा प्यार, और मैं चुप रहूँ.
तू मुस्कुराए तो समझूँ हाँ है, और देखे ब-हैरत तो मना है.
तेरे मर्ज़ी हो कि पास रुक जाऊँ या दूर ग़म ओ आलम में रहूँ.
काश तू कर जाए मेरे हक़ में दुआ, और मैं भी करता रहूँ.
जो शरमाए तो समझूँ तू भी मुझपे मरता है, और मैं भी मरता रहूँ.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)