rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

तेरी आँखों के समंदर में कुछ इस तरह गुम हो जाऊँ.

तेरी आँखों के समंदर में कुछ इस तरह गुम हो जाऊँ.
मैं लगा कर तकिया हशर तलक वहीं सो जाऊँ.
खो जा तू भी मुझमें कि अब होश में नहीं आना मुझे.
लिखता रहूँ शायरी और तुझमें कहीं खो जाऊँ.

शायर तो बन चुका हूँ रहमत अब कोई मिसरा तो दे.
लिखूँ तेरी दिलकश सूरत और लफ़्ज़ों में पिरो जाऊँ.
समेट कर होटों से तुझ पर गिरते उठते कुदरत के सौ रंग.
बना दूँ अल्फ़ाज़ों से तेरी तस्वीर और फ़नकार हो जाऊँ.

– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)