rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

तेरी बातों के दरिया में इतना उतरता चला गया.

तेरी बातों के दरिया में इतना उतरता चला गया.
जितना ज़्यादा डूबा मैं उतना निखरता चला गया.
तू मौजूद हो या फिर पोशीदा मेरी नज़रों से कहीं.
तू ठहरा रहा मेरे ख़यालों में और ठहरता चला गया.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)