दवात स्याही काग़ज़ सब लिख दिये.
लिख सके जो तुझको, मैं ऐसी कलम कैसे लिखूँ.
कोई नशा नहीं तेरे मुक़ाबिल.
कर सके तुझ सा मदहोश, मैं ऐसी चिलम कैसे लिखूँ.
लफ़्ज़ों मैं करना है तुझको बयॉं.
लिखूँ सबसे अच्छी ग़ज़ल, मैं तुझ पर ग़ज़ल कैसे लिखूँ.
हमदम हमसफ़र या मेहरम लिखूँ.
बता बिना इजाज़त तेरी, सब लिखकर मैं तुझे सनम कैसे लिखूँ.
– रहमत (जुलाहा)
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