rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

दिल-ए-नादाँ, दिल-ए-नाशाद, दिल-ए-बेज़ार भी तो हो जा.

दिल-ए-नादाँ, दिल-ए-नाशाद, दिल-ए-बेज़ार भी तो हो जा.
दिलचस्प, दिलहर्म, खूँ-ए-दिल, दिल-ए-तार-तार तो हो जा.
इतने से कहाँ भरता है ये मेरा आफ़ाक़ दिल.
मुहब्बत में अव्वल और आख़िरी दिल-ए-आज़ार तो हो जा.
लपेट कर स्याह रातों में उसके दिए सारे ग़म.
आईनों में यूँ दिलफ़रैब हो जा, दिलफ़राज़ तो हो जा.
खुश होकर क़ाबिल-ए-दिल, ख़ुशगवार, दिलकार तो हो जा.
समझ जाएगा मेरे दिल के सारे दर्द जुलाहा.
एक बार दिल-ए-जान की अदाओं का फ़नकार तो हो जा.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)