rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

मिट्टी के वो कच्चे मकाँ देखे, छोटी छोटी गलियों का सलीक़ा ओ क़रीना देखा.

मिट्टी के वो कच्चे मकाँ देखे, छोटी छोटी गलियों का सलीक़ा ओ क़रीना देखा.
महक कर सौंधी सी ख़ुशबू आई, उन बरसती बूँदों में हुज़ूर का पसीना देखा.
दरवाज़ों और झरोखों से चमक रहा था ख़ुदा का नूर कि ख़ुदा का शुक्र है.
कितना खुशनसीब हूँ जो उड़ा ले गया कोई, मैंने बचपन के ख़्वाबों में मदीना देखा.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)