rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

मेरी तमन्ना मेरी आरज़ू तेरी सब क़समें यादें वादे इंतेज़ार.

मेरी तमन्ना मेरी आरज़ू तेरी सब क़समें यादें वादे इंतेज़ार.
लगी है आग फिर भी कितना सामान बाक़ी है.
मैं तेरी बेवफ़ाई से कहाँ हुआ हूँ बहुत ज़्यादा ख़फ़ा.
अभी तो इतनी उम्मीद और एहतराम बाक़ी है.
महफ़िलों में कहाँ सिर्फ़ तन्हाई में ही तो हुआ हूँ रुसवा.
अभी होना मुझे कितना ज़लील, अभी मेरा कितना अरमान बाक़ी है.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)