याद ए नाज़नीं में यार, अश्क-ए-दिल भी रवाँ किए.
अब ख़ुद से बेगाना हैं हम, ख़ुद से रिश्ते मिटाए गए हैं.
हमने चाकू से तराशा दिल को बिल्कुल तेरे मुताबिक़.
तेरी तर्ज़-ए-अदा पे ढले, सब नख़रे हटाए गए हैं.
– रहमत (जुलाहा)
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