rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

यूँ ही रुक कर बरसों बरस साया नहीं करता.

यूँ ही रुक कर बरसों बरस साया नहीं करता.
दिल का अच्छा है वरना कड़ी धूप में वक़्त ज़ाया नहीं करता.
साये जलने लगे देख कर उजाला पत्तों पर.
ठंडी छाँव से ज़्यादा सुकून किसी को भाया नहीं करता.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)