rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

लगता है आई है फ़लक से, तेरा नीचे उतर आना दुश्मन हो गया.

लगता है आई है फ़लक से, तेरा नीचे उतर आना दुश्मन हो गया.
चहक कर फुदक रहे हैं परिंदे, तेरा यूँ नज़र आना दुश्मन हो गया.
बहरा नहीं होता है क्या सारा आसमान ख़ुद के ही शोर से.
पीछे ही पड़ गयी है बारिश, तेरा मुस्कुराना दुश्मन हो गया.
घूर कर देख रहें है सब मुझे, तुझसे नज़रें मिलाना दुश्मन हो गया.
छत पर ऐसे ना निकला कर कि मेरा दिल निकल जाता है.
सब दुश्मन हो गए, तेरी फ़ज़ाएँ दुश्मन हो गयीं, मेरा ज़माना दुश्मन हो गया.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)