rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

सँवरने लगे हैं ज़ालिम भी आजकल बद-दु’आ लेकर.

सँवरने लगे हैं ज़ालिम भी आजकल बद-दु’आ लेकर.
सूरत पर नज़र का नुक़्ता लिए ज़लील लगा करते हैं.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)