सब महबूब ए बेगम हैं, सब बेगम के ग़ुलाम.
बैठे हैं ख़ुद दामन में उनके, और हम शायरों पे इल्ज़ाम.
कहते हैं कि हम हैं आशिक़, हम इश्क़ में बदनाम.
नादाँ ये क्या जानें, बेगम ही शायरी, बेगम ही नज़्म का मक़ाम.
– रहमत (जुलाहा)
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