rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

हम जाँ-निसारों के होंठों पर लफ़्ज़ ए अंजाम ना हो.

हम जाँ-निसारों के होंठों पर लफ़्ज़ ए अंजाम ना हो.
आफ़ताब की सुबह ना हो गोया मय-कदों से शाम ना हो.
सुर्ख़-रू हो ऐसे ताकें तुझको जैसे मयस्सर हो रहा हो कोई ख़्वाब.
गर ना रहे तू पर्दे में तो सारी काइनात को कोई काम ना हो.

– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)