rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

दो शेर मेरी एक नज़्म से. समेटता हूँ तेरे चेहरे से लिहाफ़, जी भर कर देखने के लिए.

दो शेर मेरी एक नज़्म से.
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समेटता हूँ तेरे चेहरे से लिहाफ़, जी भर कर देखने के लिए.
नूर ए महताब हैं आँखें, जाँ ए दिल तेरे नशे में चूर है.
कभी रुक जाते हैं लम्हे, कभी तेज़ तेज़ चलती है धड़कन.
जन्नत सी लगती है, देखो परी है कोई या हूर है.
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– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)