rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

मुल्क़ छोड़ कर अम्न ओ सुकूँ से हसद बुग्ज़ है कोई.

मुल्क़ छोड़ कर अम्न ओ सुकूँ से हसद बुग्ज़ है कोई.
अपनी माँ से सुहूलत ए तंज़ में पनाह माँगता है कोई.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)