rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

किस वहम ओ गुमान में था रहमत, दरवाज़े बंद करता रहा.

किस वहम ओ गुमान में था रहमत, दरवाज़े बंद करता रहा.
अलबत्ता जितने भी साँप थे, आस्तीन से हो कर आए.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)