कितने आ’मालों से सबके सब घड़े भर गए.
जी हुज़ूरी शुक्रिया अदब आदाब सब सबके सर गए.
बेशर्म बेमुरव्वत बेग़ैरत बेतहाशा शौक़ से जीने लगे.
जल भुन कर देखते रहे शामियाने फिर हैरत से मर गए.
बुरे काम हर दफ़ा मुझे ही क्यूँ करने पड़े.
अब खिंच गयी केंचुलियाँ तो साँप आईनों से डर गए.
ज़िक्र ए अर्बाब ए सुख़न में भी ख़ुदा ने तुझे रहमत रक्खा.
आ मिली वो बवंडर थमते ही और हम भी अपने घर गए.
लगे रहे सब दौलत ओ वसीयत जोड़ने में इस क़दर.
इज़्ज़त देख रफ़त कि हम भी लिख लिख कर जमा कर गए.
– रहमत (जुलाहा)
कितने आ’मालों से सबके सब घड़े भर गए.
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