rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

दिल में ना कोई फ़ितूर, मेरे मन में कोई कपट नहीं रखता.

दिल में ना कोई फ़ितूर, मेरे मन में कोई कपट नहीं रखता.
मैं तेरे जैसा नहीं हूँ, ज़रा भी लाग लपट नहीं रखता.
बाअदब झुक कर करूँ सलाम या रखूँ मुँह पर सीधा चमाट.
चाट चाट कर अपनी ज़बाँ, झट-पट गट-पट नहीं रखता.
देता हूँ वक़्त कि दूर से ही सही कोई आवाज़ तो दे.
शाम तक भी नज़र ना आए मैं वो मौज ओ सैर सपट नहीं रखता.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)