rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

सज्दों में रो रो कर आपकी ज़िंदगी फ़िक्र ओ फ़ाक़ों में कट गयी.

सज्दों में रो रो कर आपकी ज़िंदगी फ़िक्र ओ फ़ाक़ों में कट गयी.
सलाम कैसे करूँ उस उम्मत को जो फ़ितने ओ फ़िरक़ों में बँट गयी.
कोई शिया हुआ, कोई सुन्नी हो गया, कोई वहाबी हुआ, कोई जमाती हो गया.
सब अपने अपने हिसाब से ‘आलिम हो गये, बेख़बर क़ौम तबक़ों में छँट गयी.
समझ गया है रहमत अब कि क्यूँ कहा करते थे वो इंशा-पर्दाज़.
मुसलमाँ इबादतों में मसरूफ़ हो गया और मिसाल ए ज़बाँ औरों को रट गयी.
– रहमत (जुलाहा)

About the author

Add comment

Avatar photo By rehmat
rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी
Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)