कोई शौक़ ए जाहिल ग़र बातिल हो, फिर वो किसी शय का क़ाइल नहीं.
जो मतलब की हवा में ग़ाफ़िल रहे उनसे ना मिल, तू उनमें शामिल नहीं.
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“इतना भी तू बुरा कहाँ, इतना भी तू नफ़रत के क़ाबिल नहीं.
बस किसी का वुजूद बेकार हुआ, बस किसी को तू हासिल नहीं.”
रियाकारों के लिए बिछते हैं ग़लीचे, तू किसी आईना ए ताब का क़ातिल नहीं.
अकेला भी हो तो क्या हुआ मोमिन, बात तेरे यक़ीन पर आ ठहरी.
ईमान बिना दुनिया फ़ना, तेरे सज्दों के बिना ये ज़मीन कामिल नहीं.
– रहमत (जुलाहा)
कोई शौक़ ए जाहिल ग़र बातिल हो, फिर वो किसी शय का क़ाइल नहीं.
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