rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

ज़माने से मुँह फेरा, और अहम ख़त्म.

ज़माने से मुँह फेरा, और अहम ख़त्म.
लुटा कर आबरू, ख़ुद पर रहम ख़त्म.
तीन गोली सुबह, तीन गोली शाम को.
दिमाग़ चलना शुरू, और वहम ख़त्म.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)