rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

दौलत ओ तंग लिबास दिखावा ओ रस्म हुआ.

दौलत ओ तंग लिबास दिखावा ओ रस्म हुआ.
बेहूदा हो बे-पर्दा ओ नुमायाँ जिस्म हुआ.
गोया नज़र ए आब रुख़्सत हो गयी जहाँ से.
ख़्वार हो ख़्वाह-मख़्वाह बे-ग़ैरत हुस्न हुआ.

– रहमत (जुलाहा)

बेहूदा – वाहियात
नुमायाँ – ज़ाहिर, खुला
गोया – जैसे
आब – रोशनी, ख़ूबसूरती
रुख़्सत – रवाना, चले जाना
जहाँ – दुनिया
ख़्वार – बेइज़्ज़त, बदनाम
बे-ग़ैरत – बेशर्म

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)