हम जाँ-निसारों के होंठों पर लफ़्ज़ ए अंजाम ना हो.
आफ़ताब की सुबह ना हो गोया मय-कदों से शाम ना हो.
सुर्ख़-रू हो ऐसे ताकें तुझको जैसे मयस्सर हो रहा हो कोई ख़्वाब.
गर ना रहे तू पर्दे में तो सारी काइनात को कोई काम ना हो.
– रहमत (जुलाहा)
हम जाँ-निसारों के होंठों पर लफ़्ज़ ए अंजाम ना हो.
आफ़ताब की सुबह ना हो गोया मय-कदों से शाम ना हो.
सुर्ख़-रू हो ऐसे ताकें तुझको जैसे मयस्सर हो रहा हो कोई ख़्वाब.
गर ना रहे तू पर्दे में तो सारी काइनात को कोई काम ना हो.
– रहमत (जुलाहा)