सज़ा-याब रहा अब उसकी आमद से ऐसे ख़ुश है जुलाहा जैसे.
लौ ए लहू मुबारक, दिया मुबारक, ज़िया मुबारक, ये सना मुबारक.
इस्तिक़बाल ए आलम ओ ख़ुश-आमदीद ए शरीक ए हयात.
वफ़ा मुबारक, अदा मुबारक, हया मुबारक. जहाँ मुबारक.
– रहमत (जुलाहा)
सज़ा-याब – जो सज़ा काट चुका हो, जिसे सज़ा मिली हो
आमद – आना
लौ – बाती, बत्ती
लहू – ख़ून
दिया – मिट्टी का प्याला जिसमें तेल डालते हैं
ज़िया – रोशनी
सना – तारीफ़, शे’र
इस्तक़बाल – स्वागत
आलम – ज़माना, ढंग
ख़ुश-आमदीद – आने पर इज़्ज़त बख़्शना, मुहब्बत से स्वागत करना
शरीक – शामिल
हयात – दुनिया
शरीक ए हयात – बीवी, ज़ौजा