rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

मिल जाए क़िस्मत की दौलत तो जीने का “ढंग” बदल जाता है.

मिल जाए क़िस्मत की दौलत तो जीने का “ढंग” बदल जाता है.
आ जाती है बदगुमानी और अकड़ कर अंग अंग बदल जाता है.
जो बनाते हैं मेहनत से अपनी तक़दीरें वो संग रहते हैं शायाँ.
वरना देखकर हरे गुलाबी नोट चेहरों का रंग बदल जाता है.
तलवे चाट कर महफ़िलों में सजती हैं सच को सताने की साज़िशें.
मियाँ ख़रबूज़ों को देख कर ख़रबूज़ों का रंग बदल जाता है.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)