मेरा इस तरह तुझमें शाद ओ आबाद रहने का इरादा है.
तू पढ़ कर सुनाये मेरे शेर और इरशाद कहने का इरादा है.
आरज़ू ए दिल ये भी है कि हो जाएँ मेरे दोनों काम ओ अंज़ाम.
एक तो तुझे दिलकश बताना है एक तेरी दाद देने का इरादा है.
शायरी की समझ कहाँ थी मुझे कि तुझे देखकर नज़्म लिख लेता हूँ.
तू बसने लगी है मेरी रगों में और क़ैद ओ आज़ाद बहने का इरादा है.
कभी देखूँ अदा कभी शोख़ी कभी नज़ाकत ए नज़्र ए करम.
तुझे भी आ रहा है मज़ा कि तेरा भी हिफ़्ज़ ओ याद रहने का इरादा है.
– रहमत (जुलाहा)
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