rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

फूलों की ज़िंदगी भी, कैसी है बे-सबात.

फूलों की ज़िंदगी भी, कैसी है बे-सबात.
सुबह को खिल के शाम को, मुरझाए से हो गए.
जवानी की बहार भी, अब ढल चली है यार.
हम भी बेजाँ चमन की तरह, बिखराए से हो गए.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)