rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

माथे पर बोसा देकर छूटे ही थे मेरी जान.

माथे पर बोसा देकर छूटे ही थे मेरी जान.
आज फिर तेरी नथ के नीचे आकर अटक गए.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)