rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

सजाते हैं शाख़ अपनी, देख कर गुलशन-ए-जवार को.

सजाते हैं शाख़ अपनी, देख कर गुलशन-ए-जवार को.
आशियाँ के फ़रेबी-ओ-अय्यार परिंदे, कौन कहे नाबकार को.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)