rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

मतलबी लालची चालबाज़, सब अख़लाक़ बैठें एक डाल हाय.

मतलबी लालची चालबाज़, सब अख़लाक़ बैठें एक डाल हाय.
लकड़बग्घे उड़ ना सकें, उल्लू चलें उनकी मस्तानी चाल हाय.
अब कौन अपना तुझसे टकराएगा जुलाहा, अब किसकी केंचुली उतरेगी.
सब गले लग रहे मिल मिल कर, सबकी नज़रों में एक दूजे का माल हाय.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)