दुनिया को मुल्क ओ गैर-मुल्क की लकीरों में बाँट लिया.
जो कम लगा तो मज़हब की जागीरों में बाँट लिया.
आज़ाद रहने ही कहाँ दिया ख़ुदा की ज़मीन को रहगुज़र.
जितना जितना बेहतर लगा सबने उतना उतना छाँट लिया.
– रहमत (जुलाहा)
दुनिया को मुल्क ओ गैर-मुल्क की लकीरों में बाँट लिया.
जो कम लगा तो मज़हब की जागीरों में बाँट लिया.
आज़ाद रहने ही कहाँ दिया ख़ुदा की ज़मीन को रहगुज़र.
जितना जितना बेहतर लगा सबने उतना उतना छाँट लिया.
– रहमत (जुलाहा)