rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

बहार ए गुल में तेरी फूलों से गुफ़्तगू.

बहार ए गुल में तेरी फूलों से गुफ़्तगू.
खबर फैलाती इन तितलियों की जुस्तजू.
गीले होंटों पर ओंस की बूँदों का इख़्तियार.
बिखर रहा गुलाबी रंग और ये तेरे रूखसार.
डाल कर जान तुझमें ख़ुदा ने संगमरमर से तुझे बनाया होगा.
छाँट कर समंदर के सारे मोती तेरी आँखों को सजाया होगा.
लफ़ंगे भवरों में नहीं थोड़ी भी शर्म ओ हया.
लहरा रही है तुझसे लिपट कर बेशर्म हवा.
लगता है ख़ौफ़ कि कोई गैला ना हो जाए.
छू तो मैं भी लूँ तुझे पर तू मैला ना हो जाए.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)