हर शख़्स अपने “मुँह बोले” फ़रिश्तों से मेरे अज़ाब पूछता है.
बता कर मुझे मुजरिम निय्यत ए सवाब, मेरे जवाब पूछता है.
हर घड़ी हर शाम अपनी लज़्ज़त ए ज़बाँ पूरी करने चकोर की तरह.
म’आज़-अल्लाह वो कितने तल्ख़ लफ़्ज़ों से मेरे मुकम्मल ख़्वाब पूछता है.
या अल्लाह वो तेरे अता किए हुए नायाब तोहफ़ों का हिसाब पूछता है.
– रहमत (जुलाहा)
हर शख़्स अपने “मुँह बोले” फ़रिश्तों से मेरे अज़ाब पूछता है.
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