rehmat.re रहमत (जुलाहा) की शायरी

शब सी ज़ुल्फ़ों में तेरी, छिपा है माह ए ताबाँ.

शब सी ज़ुल्फ़ों में तेरी, छिपा है माह ए ताबाँ.
तू नूर ए महफ़िल, हर शम्स का काशाना है.
इस क़दर हुस्न है के, दीद भी मुमकिन नहीं.
आँख झुकती है ज़ालिम मगर, दिल अभी दीवाना है.
– रहमत (जुलाहा)

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Rehmat Ullah - रहमत (जुलाहा)